तुम्हारी कुशलता की कामना करता हू।
धन्य है वो नारी जिसने तुम्हे जन्म दिया
मित्रता का रिस्ता वो रिस्ता है जो एक राजा और रंक में कोई भेद नही करता है।
जिसके एक विचार से मन व्याकुल हो उठे।
मेरे स्नेहभाव से सुगंधित ये भेट स्वीकार करो।
कभी भी सहायता के लिए संकोच ना करना।
कभी प्रालब्ध तुम्हारी परीक्षा ले तो अपना संयम ना खोना और अपने हृदय में असंतोष की भावना को उत्पन्न ना होने देना।
तुम्हारे मुख पर असाधारण तेज देख कर मुझे तुम्हारे भविस्य में किंचित भी संदहे नही है
श्रृंगार के बिना सौंदर्य भी एक पत्थर के फूल के भाती होता हैं।सदा अपने सौंदर्य को गुणों से सुसज्जित रखना ।
अगर मैंने कभी इस मित्रता की मर्यादा की सीमा को लांघा तो मैं दण्ड का भागीदार होगा।
प्रदीप श्योराण