Saturday 29 December 2018

कहानी

वो आया
मेरा मन कुछ भरमाया
इससे पहले कि मै कुछ सोचती
अपने मन को टटोलती या कुछ सपने बुनती
अचानक पाया कि
वो तो था सिर्फ एक साया.

सालों बीते
जिन्दगी ने एक दिन फिर सामने ला खड़ा किया
मैने हैरानी से पलकें झपकाईं तो
उसे उसके जीवन साथी के संग पाया,
और वो?
कुछ नया नया सा...
हालांकि पुरुष था,
फिर भी कुछ शर्माता सा पेश आया.

मैं अचानक नींद से जागी
सब उमीदें जैसे पर लगा कर भागीं
और मैं जिन्दी के पथरीले धरातल पर आ खड़ी हुई.
तो अब? अब आगे बदना होगा
खुद ही खुद को संभाल कर
नई राहें तलाश करने को चलना होगा.

मैं चलती रही
कुछ राहें बनती रहीं, कुछ मैं बनाती रही
वो भी चलता रहा
पुरुष था ना,
उसके लिये राहें आसानी से खुलती रहीं
सालों पर सालों की परतें जमती रहीं.

एक दिन फिर मिले
वो ही पुरानी बातें.....पुराने शिकवे गिले
मेरे सपनों की रानी थीं तुम
क्यों तब कुछ नहीं बोलीं थीं तुम?
आज भी तुम्हें पूजता हूँ.
काश...तुम्हारा हाथ थाम कर चला होता
तो सफ़र कुछ अलग अंदाज में ढला होता.

मैं फिर हैरान परेशान......
वापिस मन की गहराईयों में उतरी
अपने वर्त्तमान की ऊचाईयों नीचाईयों में भटकी
शायद अभी भी कुछ था
जो कसमसाता था, सवाल करता था
कि ये ना होता तो क्या होता?
वैसा होता तो क्या अच्छा होता?
सवाल तो बहुत थे पर जवाब कुछ ना आया.

फिर एक दिन जाना
कि वो मौत से वाबस्ता था
मेरा मन ना रोता था ना हँसता था
फिर भी ना जाने क्यों यूँ ही पल पल तड़पता था.

आखिर आ खड़ी हुई परम पिता ईश्वर के द्वारे
माँगी दुआएं,
और बांधी हर ठिकाने मन्नती धागों की कतारें.
जाने मेरे धागे पक्के थे
या फिर मेरी दुआएं सच्चीं
या फिर था बस एक बहाना....
वो मौत के दरवाज़े से
खुदा के रहमों करम में लिपटा लौट आया.

जिन्दगी की रफ़्तार बहुत भारी है
वो ही दस्तूर अब फिर से ज़ारी है
अब ना कोई खबर आती है ना जाती है
मगर इतना जानती हूँ कि
आजकल वो फिर से हँसता बसता है
पर हाँ....अब फिर से उसका और मेरा अलग अलग रास्ता है.

क्या करें?
खुदा के बन्दे हर नए मोड़ पर एक नया रास्ता तलाशते हैं..
और फिर..
जिन्दगी के सफ़र तो बस अपने अपने ठिकानों पर ही जँचते हैं.

Saturday 22 December 2018

दिल के राज

मेरे दिल के राज, मेरी जिंदगी का ताना बाना
पूरा तो मैने भी ना जाना
तो तुम्हें कैसे बताऊँ कि कब हुआ मेरे सपनों के नगरी में तुम्हारा आना जाना.

तुम्हारे प्यार का सुकून तुम्हारे प्यार की मस्त मदहोशी
मेरे हिस्से की ख़ामोशी, मेरे हिस्से की मदहोशी
क्या पूरा पूरा जी पाई? या फिर टुकड़ों में?
पहले तो खुशियाँ दिमाग में समाई
और फिर बाद में मेरे अस्तित्व को तोड़ती रुदन के आंधी आई.

पर देखो...मैं आज भी खड़ी हूँ --- आखिर कर लिया खुद को साकार
इस दुनिया में परमात्मा ही तो है चिरंतन और निराकार
बस मना लिया खुद को...
कि मैं भी हूँ उसी का शाश्वत आकार...
तो फिर जिन्दगी के हादसों से कैसी तकरार?

इतना प्यार करुँ सबसे इस परमात्मा की सृष्टी में
कि बस घायल हों जाऊं...... और ख़ुशी ख़ुशी कुर्बान
ताकी ला सकूँ सबके चेहरे पर एक तृप्त मुस्कान

बनाऊं मुहब्बत की पराकाष्टा की समाधी
और बस एक जुट हों जाऊं उसमें तल्लीन
जिस तरह थी कृष्ण के होठों पर बीन

Saturday 15 December 2018

प्रभु की नगरी

कौन कौन है बसता इस सुनहरी नगरी में
कुछ अपने कुछ पराये
कुछ कोहरे कुछ साए
धुंधले हैं या उजले?
रमती रहूँ इस नगरी में या फिर बेघर हो जाऊं?
इस नगरी में मेरा कुछ ना अपना ना पराया,
सब प्रभु का जाया और फिर उसमें ही समाया
मैंने तो कुछ ना बनाया ना बसाया
कोई भी चिरंतन गीत ना लिखा ना गाया
तो फिर इस जादुई नगरी में क्या पाया?
प्रभु ने भेजा पालना....
पर मेरा मन चाहे इसी नगरी में डोलना
क्यों ना चाहे नए पालने का झूला झूलना?
ऊँची उड़ान भर बादल छूना?
इन्द्रधनुषी सतरंगी किरणों पर लहराना?
क्यों चाहे इसी नगरी में डोलना?
क्या कोहरे में पलते सपनों की चमकीलीं परतें नहीं है खोलना?
प्रभु से कैसे हो मिलन?
मैं इक बहता दरिया और परमात्मा इक विशाल समुन्दर
कब तक ना होगा मेरा उससे मिलन?
इधर जाऊं उधर जाऊं -- क्यों?
समुन्दर में समा जाऊं तो बस फिर सुकून से बहती जाऊं.
समुन्दर की हो कर
उसकी तरंगों में अपना पूर्ण अस्तित्व खो कर
बस उस जैसी ही हो जाऊं.

Saturday 8 December 2018

सच

तुम्हारा सच, मेरा सच
बस तुम जानो या मैं जानूं.
तो फिर क्यों है इतनी उम्मीदें, बंधन और कड़वाहट?

तुम्हारा अकेलापन या मेरा अकेलापन
बस तुम जानो या मैं जानूं.
तो फिर क्यों है इतना इंतज़ार और बेकरारी
एक आकांक्षित मिलन की?

तुम्हारे सपनों की हंसीं या उनका रुदन
मेरे सपनों की हंसी या उनका रुदन
बस तुम जानो या मैं जानूं.
तो फिर क्यों है नींदों में मचलती मुस्कुराहटों की झंकार?

जन्म और मृत्यु के बीच का अंतराल
मृत्यु और जन्म के बीच का अंतराल
ये बस तुम जानों या मैं जानूं कि क्यों है इतना इंतज़ार.

अपनी मुहब्बत की दुनिया के राजा रानी, उसी मुहब्बत की दुनिया के भिखारी क्यूं होते है?

Saturday 1 December 2018

इच्छाओं का घर

इच्छाओं का घर--- कहाँ है?
क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना?

इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर.
पर किसने दी हैं ये इच्छाएं?
क्या पिछले जनमों से चल कर आयीं
या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं?

पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं?

क्या इच्छाएं मार डालूँ?
या फिर उन पर काबू पा लूं?
और यदि हाँ तो भी क्यों?

जब प्रभु की कृपा से हैं मन में समाईं?
तो फिर क्या है उनमें बुराई?