कौन कौन है बसता इस सुनहरी नगरी में
कुछ अपने कुछ पराये
कुछ कोहरे कुछ साए
धुंधले हैं या उजले?
कुछ अपने कुछ पराये
कुछ कोहरे कुछ साए
धुंधले हैं या उजले?
रमती रहूँ इस नगरी में या फिर बेघर हो जाऊं?
इस नगरी में मेरा कुछ ना अपना ना पराया,
सब प्रभु का जाया और फिर उसमें ही समाया
मैंने तो कुछ ना बनाया ना बसाया
कोई भी चिरंतन गीत ना लिखा ना गाया
तो फिर इस जादुई नगरी में क्या पाया?
इस नगरी में मेरा कुछ ना अपना ना पराया,
सब प्रभु का जाया और फिर उसमें ही समाया
मैंने तो कुछ ना बनाया ना बसाया
कोई भी चिरंतन गीत ना लिखा ना गाया
तो फिर इस जादुई नगरी में क्या पाया?
प्रभु ने भेजा पालना....
पर मेरा मन चाहे इसी नगरी में डोलना
क्यों ना चाहे नए पालने का झूला झूलना?
ऊँची उड़ान भर बादल छूना?
इन्द्रधनुषी सतरंगी किरणों पर लहराना?
क्यों चाहे इसी नगरी में डोलना?
क्या कोहरे में पलते सपनों की चमकीलीं परतें नहीं है खोलना?
पर मेरा मन चाहे इसी नगरी में डोलना
क्यों ना चाहे नए पालने का झूला झूलना?
ऊँची उड़ान भर बादल छूना?
इन्द्रधनुषी सतरंगी किरणों पर लहराना?
क्यों चाहे इसी नगरी में डोलना?
क्या कोहरे में पलते सपनों की चमकीलीं परतें नहीं है खोलना?
प्रभु से कैसे हो मिलन?
मैं इक बहता दरिया और परमात्मा इक विशाल समुन्दर
कब तक ना होगा मेरा उससे मिलन?
इधर जाऊं उधर जाऊं -- क्यों?
समुन्दर में समा जाऊं तो बस फिर सुकून से बहती जाऊं.
समुन्दर की हो कर
उसकी तरंगों में अपना पूर्ण अस्तित्व खो कर
बस उस जैसी ही हो जाऊं.
मैं इक बहता दरिया और परमात्मा इक विशाल समुन्दर
कब तक ना होगा मेरा उससे मिलन?
इधर जाऊं उधर जाऊं -- क्यों?
समुन्दर में समा जाऊं तो बस फिर सुकून से बहती जाऊं.
समुन्दर की हो कर
उसकी तरंगों में अपना पूर्ण अस्तित्व खो कर
बस उस जैसी ही हो जाऊं.
No comments:
Post a Comment