Thursday, 14 June 2018

बचपन से पचपन का सफर

उडती हवाई जहाज ,हेलीकॉप्टर और पतंग को देखने के लिए आज भी मैं आंगन की ओर दौड़ पड़ता हूँ।
पेड़ पे चढ़ती गिलहरी,फूलो के बैठी तितली और और सुबह की चहकती चिड़िया आज भी मन मोह लेती है मेरा।।

सोने को ना मिले तब नींद ,खाने को एक दाना ना हो तब भूख और रोने को कोई कंधा ना मिले तब आंसू बहुत कुछ सीखा सकते है।
माता का निर्लिप्त प्रेम,बड़े भाई का बड़प्पन और पिता की त्यागभरी मुस्कान सब कुछ भुला सकती हैं।।

बेवजह चेहरे पे आई मुस्कान,बिना रिश्ता जाने किया हुआ दान और बिना धन के दिया ज्ञान शायद ही कही रह गया है।

कमा सकते हो धन,पा सकते हो सुख और बना सकते हो महल पर कहा से लाओगे जब हृदय मांगेंगे प्रेम।।

रिशतो की पवित्रता, वाणी की मधुरता और विचारों की शुद्धता आज भी अपना मूल्य रखती है।
पा ना सके एक सपने को जिस के पीछे बावरे से दौड़ते थे एक जमाने मे ,उसकी याद आज भी खटकती है।।

कुछ मुझे कहना है,कुछ मेरी कलम कह चुकी है
खत्म हुआ वक़्त-ए- इंतेज़ार ,मिलन की घड़ी आ चुकी है।

-प्रदीप

1 comment:

  1. Perfect lines brother.
    Dil khush ho jata hai ye sochkar ki aisi soch rakhne Wala bhi ek dost hai mera.

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